सृष्टि का भार सौंपने स्वयं बाबा महाकाल पहुंचेंगे हरि के द्वार, साल में एक बार होता है हरिहर मिलन

सार

धार्मिक नगरी उज्जैन में कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी यानी बैकुंठ चतुर्दशी पर हरिहर मिलन होगा। जहां भगवान महाकाल की सवारी को धूमधाम से गोपाल मंदिर तक लाया जाएगा। यहां भगवान महाकाल, भगवान विष्णु को सृष्टि का भार सौंपेंगे।

विस्तार

उज्जैन में कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी पर रात 12 बजते ही श्री गोपाल मंदिर में शैव और वैष्णव संप्रदाय के प्रमुख हरि से हर का मिलन धूमधाम से होगा। इस दौरान जहां भगवान हर गोपाल जी को बिल्व पत्र की माला अर्पित करेंगे। वहीं, भगवान हरि यानी गोपाल जी के माध्यम से भगवान हर को भी तुलसी की माला अर्पित की जाएगी। इस पूजन अर्चन और मिलन के साक्षी लाखों श्रद्धालु बनेंगे और इसके साथ ही सृष्टि का भार भगवान हर फिर हरि को सौंप देंगे।

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी 25 नवंबर की रात को 11 बजे बाबा महाकाल की एक भव्य सवारी मंदिर से प्रारंभ होगी, जो की परंपरागत मार्ग से होती हुई गोपाल मंदिर पहुंचेंगे। जहां रात 12 बजे श्री महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी और श्री गोपाल मंदिर के पुजारी द्वारा भगवान हरि और हर का मिलान करवाया जाएगा। यह मिलन वर्ष में केवल एक बार होता है। इसलिए लाखों श्रद्धालु इसके साक्षी बनेंगे।

श्री महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी पंडित महेश गुरु ने बताया कि वैसे तो सृष्टि के संचालन की जिम्मेदारी भगवान हरि यानी विष्णु के पास होती है। लेकिन आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी पर भगवान हरि सृष्टि का भार भगवान हर यानी कि महाकाल को सौंपकर शयन के लिए पाताल लोक में चले जाते हैं और चार माह तक सृष्टि का संचालन भगवान शिव ही करते हैं। इसके बाद देव प्रबोधिनी एकादशी कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्दशी पर हरि और हर का मिलन होता है और फिर भगवान हर सृष्टि के संचालन का भार भगवान हरि को सौंप देते हैं। इसे ही हरिहर मिलन कहा जाता है।

उन्होंने बताया कि इस मिलन के पहले विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर से एक भव्य सवारी निकाली जाती है, यह सवारी रात 11 बजे श्री महाकालेश्वर मंदिर से प्रारंभ होती है। जो की परंपरागत मार्गों से होती हुई गोपाल मंदिर पहुंचती है, जहां रात 12 बजे हरि और हर का मिलन किया जाता है। क्योंकि यह सवारी वर्ष में एक बार निकल जाती है। इसीलिए इस सवारी को लेकर पूरे मार्ग की आकर्षक साज सजावट की जाती है और सवारी के दौरान यहां पर जमकर आतिशबाजी भी होती है। यह एक ऐतिहासिक क्षण होता है, जिसका साक्षी बनने के लिए दूर-दूर से हजारों की संख्या में भक्तगण यहां पहुंचते हैं।

ऐसा पर्व जिसमें शैव और वैष्णव दोनों संप्रदाय के लोग होते हैं शामिल
अब तक आपने देखा होगा की शैव और वैष्णव संप्रदाय के बीच अलग-अलग मत होने से दोनों ही संप्रदाय के लोग एकजुटता के साथ कोई त्योहार नहीं मानते हैं। लेकिन ऐसा मिलन है, जिसमें से और वैष्णव दोनों ही संप्रदाय के लोग शामिल होते हैं और हरि से हर के मिलन के साक्षी बनते हैं। बताया जाता है कि सिंधिया रियासत के जमाने से हरि और हर के मिलन की परंपरा निभाई जा रही है, जिसका क्रम आज भी अनवरत जारी है।

वैसे भगवान शिव को तुलसीपत्र चढ़ता है, लेकिन यहां चढ़ाई जाती है तुलसी की माला 
कहा जाता है भगवान शिव के पूजन में तुलसी पत्र प्रतिबंधित है। लेकिन हरिहर मिलन के वक्त भगवान शिव तुलसी पत्र से बनी माला धारण करते हैं। दोनों भगवानों की पूजा पद्धति को बदला जाता है। हरि हर मिलन के वक्त महाकाल मंदिर के पुजारी द्वारकाधीश की पूजा भगवान महाकाल की पूजा पद्धति से करते हैं और द्वारकाधीश को बिल्व पत्र की माला पहनाई जाती है। शिव पूजन के मंत्रों का वाचन किया जाता है। इसके बाद जब भगवान महाकाल का पूजन किया जाता है, तब गोपाल मंदिर के पुजारी बाबा महाकाल को तुलसी पत्रों की माला पहनाकर द्वारकाधीश की पूजन के वक्त पढ़े जाने वाले पवमान सूक्त का पाठ करते हैं। 

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